Thursday 28 July 2011

जिन्दगी का क्या भरोशा ?

शनिवार २२ मई २०१० की सुबह मैन्गलोर मे ईयर ईन्डिया येक्सप्रेश के विमान दुर्घटना मे अपनी जान गवाने वाली यात्रियो के प्रति श्रधान्जली व उनके परिवार के प्रति सवेदना, भगवान उनके परिवार को ईस दुख: को सहने कि शक्ति प्रदान करें ।






परिवार मे खुशी मना रहे थे 
तीन साल बाद ओ आ रहे थे
बहन की शादी के कपडे भी
यही से लेके जा रहे थे....!
उपर से खुबसुरत नजारे..
उन्होने जब देखे होन्गे..!
क्या सोचा होगा मन मे...
हम अपने देश जो पहुन्चें...
आते आते मुड गयी राहें...
कहां जाना था कहां जा पहुचें ?
लेने आये थे उनको कोई....!
उनकी राहें देखते रह गये..
धुं-धुं कर जल रहे थे.....
जोर जोर से चिख-चिल्लाते
पर कौन उन्हे बचाने आते
कैसां मंजर रहा होगा ओ..?
जब जल रहे थे उसमे सारे

"क्या पता कब क्या हो जाये...
जिन्दगी का क्या भरोशा ?????
प्यार-प्रेम से हम सब रहें.........
अति लोभ-ईर्श्या करें ना गुस्सा..! "

जिन्दगी एक गाडी


एक दिन औफिस जाते हुये मै रास्ते मे रुक गया और गाडियो को देखने लगा.. देखते ही देखते मेरे मन मे एक ख्याल आया.. और ओ ख्याल कविता के रुप मे आपके सम्मुख प्रस्तुत है:-








तेज दौडती गाडी को देखा...
तो जिन्दगी का ख्याल आया...!
जिन्दगी भी तो एक गाडी है दोस्तो..
जिसे मैने बहुत तेजी से दौडते पाया....

चलती गाडी से पिछे, मुडके जब मैने देखा..
मोह माया की दौड मे, सबको दौडते पाया.....!
क्या पता कब रुक जाय, सफ़र ईस गाडी का..?
क्योकि कब किसपे से हटा दे, ओ मालिक अपनी साया..

पुन्य, दया, धर्म के रास्तो को, सदा खाली पाया....
कोर्ध,ईर्श्या,लोभ,माया के रास्तो पर, बडा जाम पाया..!
खाली रास्तो पर होगा कठिन, भीड मे आसान चलना.
न भर्मित हों हम रास्तो से, सभी को वही है जाना....

दुख: सुख: के पहियों पे, गाडी को है चलना...
कभी सर्दी तो कभी गर्मी, कभी मौसम बेगाना..
क्या लेके थे आये, क्या लेके है जाना....?
दया धर्म का मुल है, यही सबसे बडा खजाना

यादें


"राजकिय ईंटरमिडिएट कालेज मुन्नाखाल" ईस स्कुल मे बिताये 7 साल की यादेँ सदा ही याद आते रहेगी । उन्ही यादोँ को समेट कर कविता के माध्यम से आपके सम्मुख ये 4 पक्तियाँ सादर...................







कभी हंसाये कभी रुलायें
रह जाती है तो बस यादें ।
स्कुल के दिन कैसे गुजारे
रह गयी है अब बस यादें ।।

कास येसा जो कभी हो जाये
बचपन के दिन लौट के आये ।
मुडकर फिर हम स्कुल जायें
फिर ना कभी आती ओ यादें ।।
कभी हंसाये कभी रुलायें
रह जाती है तो बस यादें

यांदो मे यादे है समायें
बचपन के ओ खेल तमासे ।
घन्टी स्कुल कि बज जायें
देर से हम फिर स्कुल आयें ।।
कभी हंसाये कभी रुलायें
रह जाती है तो बस यादें  

जमी कुर्सी और छ्त है तारें
गुरुजी धुप सेक के पाठ पढायें ।
लडे-झगडे और पढे-पढायें
यही तो है बचपन कि यादें ।।
कभी हंसाये कभी रुलायें
रह जाती है तो बस यादें

कभी हंसाये कभी रुलायें...
रह जाती है तो बस यादें...

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ - 2022

 शिक्षा का दान करने वाले महान होते हैँ ।  शिक्षक के रुप मे वह, भगवान होते हैँ ॥  शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ