Friday 12 August 2011

रक्षाबँधन



रक्षाबंधन फिर से आया, लेके खुशियां सारी
सदा खुशी तूम रहो मेरी बहना, ये दुवा हमारी
बहन की खुशियों के खातिर सदा, तत्पर है ये भाई
ईस दुनिया मे सबसे सुन्दर, बहना मेरी प्यारी
ईस दुनिया मे सबसे सुन्दर, बहना मेरी प्यारी

खुबसूरत राखी के धागे से, सजी है ये कलायी
बडी प्यार से मेरी बहना ने, मुझको है पहनायी
बांध के राखी और फिर उसने, खिलायी मुझे मिठायी
ईस दुनिया मे सबसे अच्छी, बहना मेरी प्यारी
ईस दुनिया मे सबसे अच्छी, बहना मेरी प्यारी

प्यार से ये जो राखी तूने, मुझको है पहनाई
इस धागे का फ़र्ज निभाऊ, बस इतनी है दुवाई
चाहे कितने भी आयें मेरे, रास्ते मे कठनाई
सब रिस्तो से बढकर है, रिस्ता बहन भाई
सब रिस्तो से बढकर है, रिस्ता बहन भाई

बचपन के ओ खेल तमासे, कभी हुयी लडाई
लडते-लडते पढते-पढाते, कभी हुयी पिटायी
याद आता बचपन बहना, जो संग मे बितायी
ईस दुनिया मे सबसे सच्ची, बहन मेरी प्यारी
ईस दुनिया मे सबसे सच्ची, बहन मेरी प्यारी


सर्वाधिकार सुरक्षित ©  विनोद जेठुडी
12 अगस्त 2010 @ 22:20

Tuesday 2 August 2011

अन्दर से आँसु बहे जा रहे है

बहार से हम, मुस्कुराये जा रहे है
अन्दर का गम, कोइ ना जाने..
बहार से आँसु, दिख ना पाये..
अन्दर से आँसु, बहे जा रहे है
अन्दर से आँसु, बहे जा रहे है..

बातें तो मीठी, किया करते थे..
बगल मे चाकू, घीसे जा रहे थे..
जिनको मै अपना, समझ रहा था..
वही मुझसे दगा, किये जा रहे थे..
वही मुझसे दगा, किये जा रहे थे..

झूठ जो बोलता, जीत चुका था..
सच्च जो बोला, हार गया मै...
सच्चायी की.. जीत है होती...
इसी आस मे मै, जिये जा रहा था.
इसी आस मे मै, जिये जा रहा था.

बहुत बडी मै, खता कर गया था.
पहली नजर मे, फ़िदा हो गया था.
ओ क्या जाने, होती है तडपन ?
काश जो उनको, अहसास होता.!
काश जो उनको, अहसास होता..

बहार से हम मुस्कुराये जा रहे है
अन्दर का गम, कोई ना जाने..:
बहार से आँसु दिख ना पाये..
अन्दर से आँसु, बहे जा रहे है
अन्दर से आँसु, बहे जा रहे है..

सर्वाधिकार सुरक्षित ©  विनोद  जेठुडी, 12th सितम्बर 2010 @ 11:15 AM

सपनो मे एक फूल खिला

सपने सजोकर सपना देखा..
सपनो मे एक फूल खिला..
थी दिल्ले तम्मना फ़ूल को पाना
फूल को मैने पा लिया...।

तूझसे मांगू मै दुवा..
सुन ले मेरे ये खुदा..
मुर्झाये ना फूल ये मेरा
हिबाजद करना इसकी सदा

फूलो से सिखा मुस्कुराना
जिन्दगी भर हंसते रहना
हंसते-हंसते समय बिताना
मध्यम-मध्यम सफ़र सुहाना

पूरा गाना पोस्ट नही किया गया है..

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी
12  फ़रवरी 2011 @ 23:03

माँ सर्वश्रेष्ठ है जग मे

कमर मे बांधे बच्चे को माँ
सर मे भारी बोझ उठाती
खुद तो भुखी  रहती है माँ
बच्चे को भर पेट खिलाती

बच्चे को छाती से लगाकर
बदन के कपडे से है ढकती
पौष की ठन्डी रातो मे माँ
खुद  गीली चादर मे सोती

बच्चे की ख़ुशी मे खुश रहती माँ
अपनी ख़ुशी वह कुछ नही चाहती
कांटा चुभे जो बच्चे को तो....
माँ को दर्द बडी जोर से होती

माँ सर्वश्रेष्ठ है जग मे..........
माँ से बढकर कोइ ना प्यारी
माँ की ममता लिख ना पाऊ
जैसे सागर की गहराई.........

अपने तन पर हमे बसाये
बच्चे का माँ बोझ उठाती
कष्ट सहे है माँ ने कितने
यह तो माँ ही है जानती

"माता पिता की सेवा करना
उनको सदा सुख ही देना......
माँ के आन्सु अगर गिरे तो
फिर सारी उम्र पछताना".....

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

धन्य हे नारी


बेटी बनकर सेवा करती....
माता-पिता क़ि प्यारी दुलारी
बडी हुयी और हुयी सगाई..
डोली मे बैठकर हुयी विदायी..



घर गांव अपना छोड के आती
बहु-पत्नि बनकर सेवा करती...
नये मुल्क नये देश मे फिर से
छोटा सा अपना घर बसाती...।







माँ बनी फिर आयी जिम्मेदारी
घर के खर्चे बच्चो की पढायी....
ग्रहस्थ जीवन की कठिन लडाई, पर.
आवश्यकताये कभी पुरी ना होती..।

उम्र गुजरी और बन गयी दादी
पूरे परिवार की डोर सम्भालती
नाती पोते साथ मे आते........
दादी मां उन्हे कहानी सुनाती..।

कभी दुख सहते सहते..
बन जाती है ओ बेचारी..
दुख की सीमा पार हुयी जो
बींरागनी बीर बनी ओ....
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ।

सारे जग की जननी है नारी
उसी से हुयी है उत्पति हमारी
दिल मे ईतना प्रेम बसा है..
जैसे सागर मे गहराई....।

माँ की ममता का ये आंचल
बहन की राखी का ये बन्धन
पति पत्नि का का ओ रिस्ता
धन्य हो नारी तुझको तेरे.....
हर रुप मे मिली सफ़लता....
धन्य हे नारी, धन्य हे नारी
धन्य हे नारी, धन्य हे नारी

14 दिसम्बर 2010, समय 7:30 AM, सर्वाधिकार सुरक्षित ©  विनोद जेठुडी 

अभिलाषा

"सुमन" से मिलने की अभिलाषा
"रुची" अपनी कुछ और है कह्ता !
"प्रार्थना" से जुडी है "आश्था"
कल-कल,छल-छल करती "सरिता" !!

घने बादलो से आयी थी "छाया"
पर फ़ंसा गयी मुझको ये "माया" !
"दिव्या" "द्रष्टि" को भी पाया
"भावना" ने मान बढाया !!

साधु बन कर पाया "दिक्षा"
सालो कि ये मेरी "तपस्या" !
घडी आयी और हुयी "परिक्षा"
कुछ दिनो बाद होगी "समिक्षा" !!

दिल मे छायी थी एक "आशा"
अन्धेरे मे भी "रोशनी" दिखता !
"किरन"मु़झको खुब है भाता
सुबह-सुबह "खुशबु" से मिलता !!

सुमन = फुल/रुची = ईच्छा/प्रर्थना = प्रेयर/सरिता = नदी/छाया = छाव/माया = पैसा/दिव्या = अद्रश्य शक्ति/
भावना = बिचार/दिक्षा = आध्यात्मिक ग्यान/तपस्या = तप/परिक्षा = ईक्जाम/समिक्षा = मुल्यांकन/आशा = उमिद/रोशनी = ऊजाला/किरन = प्रकाश/खुशबू = सुगन्ध....


सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी

एकतरफ़ा प्यार मे मजा नही आता

किसी पे क्यों योहि दिल लग जाता....
क्यों उसके सिवा कोई अच्छा ना लगता ?
उससे भी कुछ सुनना मै चाहता.............!
क्योंकि एकतरफ़ा प्यार मे मजा नही आता...

सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी, 2010, ३ मार्च २०११ @ ०७:०४ AM

सरस, सुन्दर, शुशील सजनी

सुन्दर मन से सुन्दर तन की
सुन्दरता की करू सहाय..♥♥..
सुन्दरी इतनी सुन्दर लगती..
सारी सुन्दरता तुझमे समाय

सुन्दर सुन्दर लगती सुन्दर..♥..
सुन्दरी तुमसे सुन्दर ना कोई..
सुन्दर जग मे सुन्दरी पाकर.♥
सुन्दर अपना भाग्य जो होय..!


सुन्दर सुन्दर मन के अन्दर,
सुन्दर सुन्दर सपना संजोय.♥
सुन्दर जीवन सुन्दरी के संग.
सुन्दर सुन्दर पल बिताय♥♥

"सुन्दर सुन्दर लगती सुन्दर..
सुन्दरी तुमसे सुन्दर ना कोई.!
सुन्दरी इतना सुन्दर लगती.♥.
सारी सुन्दरता तुझमे समाय"

सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी, 10 फ़रवरी 2011 @ 7:10

सरस सुन्दर शुशिल सजनी

सरल सरस स्वर्ण सज्जित....
सुन्दर शुशिल सप्रेम समाहित...
सुन्दर सपने सह्रदय सकेन्द्रित....
सजनी सजन संग सम्पूर्ण समर्पित....

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 9 फ़रवरी 2011 @ 07:10 AM

सबसे बडी मै खता कर गया था

सबसे बडी मै खता कर गया था
पहली नजर मे फ़िदा हो गया था
दिल लगाने से, धोखा मिलेगा..... !
ये सब मुझको कंहा पता था.......?


सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी, 13th Sep 2010 @ 07:35 AM

अब तो सिर्फ़ रह गयी यादें

छोटे-छोटे सपने, मीठी-मीठी बातें
फोन पे बतियाना, लम्बी-लम्बी रातें
तेरे बिना कैसे जी पायेन्गे ?????
अब तो सिर्फ़ रह गयी यादें.........!

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी
 13th Sep 2010 @ 07:30 AM

कह दो कि ये सब झूठ था

प्रेम का नामोनिशान मिट जायेगा.............
फिर कोई किसी पे विस्वास ना कर पायेगा ।
कह दो कि ये सब झूठ था....................?
वरना कभी कोई किसी से दिल ना लगायेगा ॥

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 13 सितम्बर 2010, 07:24 AM

वापस मुझे मेरी खुशी दे देना

ना रही और लडने की  हिम्मत,
ना रही कुछ पाने की तम्मना...
जो भी पाया उसमे ही खुश था,
जादा खुशी का मुझे क्या है करना ?
दी हुयी चिजो को वापस लेना,
ये कंहा का है दस्तूर तेरा ????
भगवान तेरे दर पे आया हूं,
वापस मुझे मेरी खुशी दे देना...!

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 10 सितम्बर  2010 @ 11:24 AM

मुक्कदर


पाने को इनाम अपना, कुछ भी कर लेन्गे...
कभी सोचा ना था मैने, येसे भी दिन देखने पडेन्गे.
कि मन्जिल पा चुका था मै अपनी लेकिन....
मुक्कदर हमसे हमारा इनाम, वापस छीन लेन्गे..

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 10 सितम्बर 2010 @ 10:57 AM

गमो का सागर

गमो के सागर मे गोते खाये जा रहा हूं
दुखो की लहरो से टकराये जा रहा हूं
उफ़्फ़ कितना दर्दभरा है ये सफ़र..
फिर भी मन्जिल पाने की आस मे...  
आघे बढा जा रहा हूं.......॥ 

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, 10 सितम्बर 2010 @ 10:32 AM

अब मन्जिल नयी हैं

बदला कुछ नही, सब कुछ वैसा ही है
आप ने वही चुना जो रास्ता सही है...
दिल वही धड्कन वही, पर एक चीज नयी है
जिन्दगी के सफ़र मे अब मन्जिल नयी हैं.....

हम तो हो गये मगन

सुरज कि पहली किरण..
हँसे जँमी और मुस्कुराये गगन
हम तो हो गये मगन...
तेरी चादंनी मे किरन....

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

प्रेम दिवस के दोहे

प्रेम दिवस के प्रेम पर्व पर, प्रेम का बस करें गुणगान ।
सच्चे मन से हों समर्पित, सदा सबका करें सम्मान ।।

ईर्श्या क्रोध ना कभी पनपे मनमे, किसी का कभी ना करें अपमान ।
प्रेम का दिलो मे दीप जले जंहा, वंहा बसते है भगवान ।।

परोपकार मे बनो धनी इतना कि, तुम से बडा ना कोइ धनवान ।
दया हर प्राणी से करें और, बढे  सतकर्मो से स्वाभिमान ।।


 सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी, २०११
13 फ़रवरी 2011 @ 23:45

दिपावली की हार्दिक सुभकामनायें

सुख  शान्ति और सम्रधी की करता हूं कामना
पुरी हो आपकी सभी मनोकामना..
दीपो के इस पावन पर्व पर आप सभी को..
सपरिवार दिवाली की हार्दिक सुभकामना..
                                 
विनोद जेठुडी, ४  नवम्बर २०१० @ २३:३३  

मै तडप रहा हूँ रो रहा हूँ














वह भी खुश थी....
मै भी खुश था....!
एक दुसरे को पाके.....
जो भी मांगा था रब से..
वह पाया था उसमे....
बडे-बडे सपने देखे थे..
साथ जिन्दगी बिताने के
उड गये सारे सपने...
एक हवा के झोके से..!
हवा का झोँका कुछ यों आया...
कि अन्धविस्वासो की लहर मे,
मेरी सारी खुशीया ले गया....
मै तडप रहा हूँ, रो रहा हूँ...!
किसे अपनी सुनाँऊ... ?
जिसे सुनाना भी चाहुँ पर
उसे निन्द से कैसे उठाऊ ?
अर्धरात्री हो चुकी है...
नीन्द मुझे क्यों न आती ?
उसको भूलना तो चाँहु पर..
उसकी यांदे दिल से ना जाती..
कुछ सोचता हूँ, समझता समझता हूँ..
यो ही अपने दिल को,  
मनाये जा रहा हूँ.....
अगर ओ ना मिली जो तो..!
उसके बिना कैसे जी पाऊ ?

8 सितम्बर 2010 @ 23:38 PM
सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

सच्ची प्रेमी



















प्रेम पुजारी प्रेम  दिवानी........
प्रेम की एक छोटी सी कहानी...!
इन्तजारी मे, बैठी है किसी की..
पास मे नदी का, बहता पानी....!!

गया था कोइ उसे छोडकर..
फिर न देखा पिछे मुडकर...!
अन्त मिलन कि जगह येही है...
पार गया ओ, सात समुन्दर....!!

हर दिन ओ यंहा है आती..
कुछ समय अपना बिताती..!
मन का बोझ हल्का होता..
शायद अपने मन को बहलाती..!!

हाय ये कैसी प्रेम मजबुरी ?
फुट-फुट कर कभी ओ रोती..!
प्रेम के रन्ग का पी गयी पानी
जैसे क्रिष्ण के रंग मे राधा दिवानी..!!

प्रेम पुजारी प्रेम दिवानी
प्रेमी कोई ना देखी येसी..!
तडप रही है, झुलस रही है
फिर भी उसको ना भुल पाती..!!

"प्रेम की पुजारी, प्रेम की दिवानी
प्रेम की एक  सच्ची कहानी........
ईन्तजारी मे, बैठी है किसी की..
पास मे नदी का, बहता पानी...."

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

काश एक समान हर कोई होता..


काश जो दुनिया मे येसा होता.!
एक समान हर कोई होता....
रोड पे ना कोई भुखा मरता!...
पैसे कि क्या होती किमत ??
क्या जाने ओ.........
जो कोई महलो मे है रहता..
और कोई......!!!!
बिन खाये शाम कि रोटी
खुले आशमान के निचे सोता....
काश जो दुनिया मे येसा होता.!
एक समान हर कोई होता...
सोचो फिर दुनिया कैसे होता ?
एक समान हर कोई होता...

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ - 2022

 शिक्षा का दान करने वाले महान होते हैँ ।  शिक्षक के रुप मे वह, भगवान होते हैँ ॥  शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ