Thursday 27 July 2017

इतिहास गवाह है कि जब जब पुत्र मोह जागी है तब तब सत्ता भागी है


  • लालू का पुत्र मोह विहार ले डुबा
  • मुलायम का पुत्र मोह उत्तर प्रदेश ले डुबा
  • कैकई का पुत्र मोह जशरथ की जान ले गया 
  • धृष्टराष्ट्र का पुत्र मोह महाभारत जैसे युद्द करवा बैठा
  • राजमाता शिवागामी का पुत्र मोह महिस्पति राजसिंहासन ले डुबा
  • गुरु द्रौण का पुत्र मोह के कारण अश्वत्थामा आज भी प्रथ्वी पर भटक रहा है 
  • और सोनिया गाँधी के पुत्र मोह  के कारण काग्रेस मुक्त भारत का निर्माण हो रहा है 
                                        विनोद जेठुड़ी  

Tuesday 25 July 2017

अमर शहिद श्री देव सुमन को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि एँव श्रद्धा सुमन अर्पित



जब पुरा देश गुँज रहा था, आजादी के नारोँ से
तब टिहरी रियासत तडप रही थी
, राजा के अत्याचारोँ से
कोई नही बच पाता था इन, “कर” लेने आये साहूकारोँ से 
तब जा के एक "श्री देव" आया था, लडने इन अंधियारोँ से

दयालु हर्दय के कारण आप "सुमन" कहलाये थे 
अत्याचारोँ के खिलाफ, सदा आवाज उठाते थे
आजादी की लडाई मे भी सबसे आगे रहते थे
साहित्य, सम्पादन और सम्मेलन से सदा जुडे रहते थे

बँमुँड पट्टी के जौळ गाँव के आप मूल निवासी थे
हरिराम और तारा देवी के तीसरे लाडले बेटे थे
गायत्री बहन और परशुराम, कमलनयन दो भाई थे
विनय लक्ष्मी जैसी पत्नि का, हर पल साथ पाते थे

कुनैन के नसातंर्गत इंजेक्शन तुम्हे लगाये जाते थे
जिससे तुम पानी पानी चिल्लाते रहते थे
मोहन सिँह जेलर की यातनाये, बहुत तूम सहा करते थे
पत्थर पीस कर रोटी बनाते, फिर तूम्हे खिलाते थे

जानवरोँ जैसा ब्यव्हार, “सुमन”  आपसे किया करते थे
सजा दिलाने के लिए,  झूठे आरोप बनाते थे
209 दिनो तक मुजरिम बनकर, कारावास मे विताये थे
फिर 84 दिनो के अनशन मे अपनी जान गवायेँ थे

25 जुलाई 1944 को सुमन आपने प्राण त्याग दिये
बोरी मे बाँधकर आपके शरीर को, भिलंगना मे बहा दिये
जन अधिकारोँ की लडाई मे आप अमर शहिद हो गये
राजा की नौकरशाही से जनता को आजाद करा गये 

मैँ अपने शरीर के कँण - कँण को नष्ठ हो जाने दुँगा

लेकिन नागरिकोँ के अधिकारोँ का शोषण नही होने दुँगा
निर्ममता और तानाशाही के खिलाफ आपके नारे थे
दृढ इच्छा, दृढ़ शक्ति, दृढ़ आपके इरादे थे 

अमर शहीद के बलिदान दिवस पर, पुष्पांजली अर्पित करता हूँ 
जन्म दिया जिस मां ने तुमको, उसको प्रणाम करता हूँ 
जौल गाँव की उस मिट्टी से मै तिलक लगाता हूँ 
नम आंखों से भावभिनी श्रन्धांजली अर्पित करता हूँ 

© विनोद जेठुड़ी 

Monday 17 July 2017

जिम्मेदारियां


सुबह सुबह उठ कर निकल जाता हूँ
अपनी राह पर .......
शाम होते ही पहुँचता हूँ
अपने ठिकाने पर
अंधेरा मे जाता हूँ
अंदेरा मे आता हूँ
अंधेरे मे ही परिवार से
फोन पर बात कर लेता हूँ

जिम्मेदारियोँ को निभाने निभाते
जिम्मेदार बन गया हूँ
इसी जिम्मेदारी के खातिर
यँहा परदेश आया हूँ ।
जब आया था, तो सोचा
बस, 3 साल की बात है
लेकिन आज 13 साल हो गये
वापस जाने की हिम्मत
न जुटा पा रहा हूँ ॥

कभी कभी तो सोचता हूँ कि
छोड छाड के के चले आता हूँ  
अपने देश मे ......
फिर “जिम्मेदारियाँ” कहती है....
क्या कमा पाओगे इतना पैसा वहाँ ?
जितना है इस परदेश मे ॥

वतन की जब कोई तसवीर
फेसबूक पर देखने को मिलती है  
सच बोलूँ यार, उसी वक्त
बतन की बहुत याद आती है ।
शादी, ब्याह और त्योहारोँ मे
जब परिवार की फोटो आती है
देख देख कर मन भाऊक हो जाता है  
और आंखे भर आती है 

© विनोद जेठुड़ी 

Thursday 13 July 2017

प्रकृति का दर्द

अपने आशियानो को जलाकर भी
घर तुम्हारा रोशन किया हमने ।
कर्ज कैसे अदा करोगे हमारा ?
जब फर्ज ही भुला दिया तुमने ॥
                          "Pain of Nature"
+Vinod Jethuri

समय के साथ मदद के हाथ


उम्र ढलती गयी, समय निकलता गया
निम्मेदारियों को अपनी, बखूबी निभाता रहा
कभी किसी की मदद करने का समय ही न मिला
अब जब समय मिला तो खुद मदद के लिए  तरसता रहा

©  विनोद जेठुडी 
www.dayaluta.blogspot.in 

पर्यावरण सरक्षण की दिशा मे योजनाविहीन सरकार को सुझाव - "पेडोँ से है रिश्ता हमारा"

   हम गाँववासियोँ के सहयोग से अपने क्षेत्र मे पर्यावरण सरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुय विर्क्षारोपण करना चाहते है । इसी सम्बंध मे जब हम पौधोँ के लिये क्षेत्रिय कार्यालय डी.एफ.ओ औफिस मुनि की रेति मे आवेदन किया तो डी.एफ.ओ साहब ने यह कह कर मना कर दिया कि इस वर्ष सरकार की येसी कोई योजना नहि है जिसके तहत हम आपको पौधे मुहैया करा सकेँ और अगर कोइ येसी योजना आयेगी तो आपको पौधे मिल जायेंगे । डी.एफ.ओ साहब ने अपनी ड्युटी निभाते हुए बिल्कुल सही किया ।
   मेरा एक सुझाव है कि सरकार को पर्यावर्ण सरक्षण की दिशा मे कार्य करना होगाकोई येसी योजना बनानी होगी जिससे लोगो को विर्क्षो को लगाने व उनकी देखभाल करने के लिये प्रेरित करना होगा । दुख: हुआ सुनकर कि वर्तमान सरकार ने अभी तक येसी कोई योजना नही बनायी है जिसके तहत विर्क्षारोपण हेतु लोगोँ को प्रेरित किया जाय ।
    इससे अच्छी तो पिछली सरकार थी जिसने “हमारा पेड हमारा धन” और "हरियाली" जैसी योजनाएँ लाकर पर्यावरण सरक्षण के प्रति अपनी कर्तब्यनिष्ठा दिखाई । सरकार जल्द से जल्द अगर येसी कोई योजना नही लाती है तो वन विभाग के नर्सरियोँ मे जो लाखोँ पौधे पेड पैधारोपण के लिए तैयार है हर साल की तरह सडकर नष्ट हो जायेँगे क्योंकि सरकार खुद पौधेरोपण करेगी नही और जो कोई करना चाहतेँ है उनको फ्री मे पैधा देगी नही ।
   वन विभाग भी अपनी ड्युटी निभाते हुए अपनी नर्सरी मे पौधे तैयार तो कर देती है लेकिन सरकार की योजाना का एंतजार करती रहती है और योजना तब बन कर आती है जब तक वर्षा रितु खत्म हो जाती है । 
सुझाव :- पेडोँ से है रिश्ता हमारा
    पेड का हमारे जीवन में भोजन और पानी की तरह महत्वपूर्ण हैं, पेड़ के बिना मानव जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है | हमें स्वस्थ और समृद्ध जीवन देने में पेड़ो का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है । हमें अधिक से अधिक संख्या में अपने निजी और सरकारी जमीन पर वृक्ष लगाने चाहिए जिससे प्रकृति का संतुलन बना रहे और प्राकृतिक आपदाओं को रोका जाय | वन, भूस्कलन को रोकते है और हमें शुद्ध ऑक्सीजन देते है । वन देश और राज्य की प्रगति में हमें आर्थिक सहयोग देते हैं | मानव सृष्टि का सर्वश्रेष्ट प्राणी है इसलिए वृक्षारोपण मानव समाज का दायित्व है |
    प्राचीन काल से ही मानव और प्रकृति का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । भोजनवस्त्र और आवास की समस्याओं का समाधान भी इन्हीं वनों से हुआ है । 
बचपन में लकड़ी के पालने में झूलनाबुढ़ापे में उसका सहारा लेकर चलना और जीवन लीला की समाप्ति पर इन्हीं लकड़ियों पर सोना मनुष्य की अन्तिम गति है । इन वृक्षों से हमें शुद्ध ऑक्सीजन मिलती है । घने वनों की हरियाली देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है ।
वृक्ष स्वयं धूप में रहकर हमें छाया देते हैं । जब तक हरे-भरे रहते हैं तब तक हमें फलसब्जियां देते हैं और सूखने पर ईंधन के लिए लकड़ी देते हैं । इन्हीं वृक्षों की हरी पत्तियों और फलों को खाकर गायभैंसबकरी आदि जानवर दूध देते हैं जिसमें हमें प्रोटीन मिलता है ।
   अर्ताथ: कह सकते है कि पेड नही तो जीवन नही जो आदि काल से पेडोँ के साथ हमारा रिश्ता चला आया है हमे वह रिश्ता निरंतर कायम रखना होगाइसलिये इस कार्यक्रम का नाम “पेडोँ से है रिश्ता हमारा” सुझाया गया है ।
  प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अपने जीवन में एक वृक्ष अवश्य लगाए । आज हम स्वार्थ के लिए पेड़ तो काटते है लेकिन लेकिन पेड़ लगाना भूल जाते है जिससे ग्लोबल वार्मिग की समस्या आज इतनी उग्र होती चली जा रही है । हर एक ब्यक्ति को पेडोँ के साथ अपना एक रिश्ता कायम करना होगा और यह रिश्ता जीवन भर चले इसलिए लगाये गये पेड की देखभाल करे । योँ तो हर साल लाखोँ पेड लगते है लेकिन रखरखाव के अभाव मे बहुत कम पेड ही जीवित रह पाते है । पेडोँ के साथ हमारा अटैचमेँट होना जरुरी है । हमे जो भी लोग पेड लगएँ उनकी देखभाल करने के लिये उत्साहित और प्रोत्साहित करने की आवश्यक्ता है ।
यों तो उत्तराखंड के जंगलो में हर साल गर्मियों में आग लगती है परन्तु पिछले साल 2016 की गर्मियों में फरवरी से अप्रैल तक 88 दिनों से जादा समय तक लगी भीषण आग से 3 हजार एकड के लगभग जमीन जलाकर खाख हो गयी जो पेड जल गये अब समय है कि विर्क्षारोपण करके उन जगँलो को फिर से हरा भरा बनाया जाय ।
   बहुत सी योजनायेँ जैसे जन्मदिवस परशादी के अवसर परबच्चे के चुडाक्रम के अवसर पर शादी की वर्षगाँठ के अवसर परकिसी सुभ कार्य के अवसर परअपने परिवार के किसी ब्यक्ति के नाम पर आदि बहुत सी अवसर पर लोग विर्क्षारोपण करते है जिसकी मै सराहना करता हूँ लेकिन लगाये गये पौधे की पेड बनने तक देखभाल करना और उस पेड के साथ अटैचमेँट होना बहुत जरुरी है क्योंकि कभी कभी देखने को मिलता है फोटो मे पेड तो लग गए लेकिन कुछ दिन बाद देखो तो वह पौधा सुख चुका होता है ।
    चिपको आंदोलन के जैसे एक क्रंति की आवश्यक्ता है और मै चिपको आंदोलन का बहुत बडा समर्थन करता हूँ क्योंकि इस आन्दोलन मे प्रकृति और मानव के बीच जो रिश्ता था जो बीच मे आ गया था और लाखोँ पेड कटने से बच गये थे ।
    आशा करता हूँ कि सरकार इस सुझाव पर अमल करते हुए जल्द से जल्द कोई येसी योजना बनायेगी जिसके तहत इस साल भी हम प्रकृति को बचाने हेतु कुछ पौधोँ का विर्क्षारोपण करने मे सफल होँ ।
    आओ अपने जीवन में एक पौधा लगाए और पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करे तभी सच्चे अर्थो मेँ हम प्रकृति के साथ अपना रिश्ता कायम करते हुए अपनी जिम्मेदारी निभा पाएंगे | 
धन्यवाद !

विनोद जेठुडी
प्रकृति प्रेमी

Wednesday 12 July 2017

एक संदेशवाहक का दर्द


















मैँ आज भी लटका हूँ इस पेड पर
इस आशा के साथ कि…….
कोइ तो होगा मेरि सुध लेने वाला
जिसने कभी मेरा प्रयोग किया होगा
भले ही आज कि इँटरनेट की दुनियाँ मे
पल झपकते ही पल भर मे ही
अपनो की हर पल की खबर मिल जाती है
लेकिन वह भी समय था .....
जब मेरे माध्यम से
अपनो को चिठ्ठी भेजी जाती थी
और लम्बे इंतजार के बाद
उस संदेश को पढने के बाद की अनुभूती
सिर्फ ओ ही महसूस कर सकता है
जिसने कभी चिठ्ठी भेजी और प्राप्त की होगी
पुछो उन दो दिलो से
जिनका प्रेम पत्र मैंने
एक दुसरे को पहुँचाया
कभी कभी कुछ शरारती तत्वोँ
से भी मेरा पाला पडा
जब ओ लकडियोँ की डँडियोँ से
इन प्रेम पत्रोँ को पढा करते थे
लेकिन इतनी तो शराफत थी कि
पढने के बाद वापस डाल दिया करते थे
मैँ मौन बने इन सभी हरकतोँ को
देख – देख कर मुस्कुराता रहता था
लेकिन कभी भी किसी को नही बताया
खुशी है इस बात कि जिस संदेश को
पहुँचाने मे मुझे महिनो लग जाते थे
वह संदेश अब पल झपकते ही पहुँच जाता है
लेकिन दुख: है इस बात का कि
जीनके लिये मैंने अपना
पूरा जीवन लगा दिया
ओ ही मुझे भुल गए हैँ ।

© विनोद जेठुडी 

Wednesday 28 June 2017

खाड़ी देश यू. ए. ई में विर्क्षरोपन

दोस्तों मुझे आपके साथ यह फोटोज साझा करते हुए बेहद ख़ुशी ही नहीं अपितु गर्व महसूस हो रहा है कि सयुक्त अरब एमिरात की तपतपाती गर्मी और रेतेली मिट्टी में मैंने 2006 में जो पौधा लगाया था वह अब पेड़ बनकर छाँव देने लायक हो गया है इस पेड़ की छाँव के नीचे बहुत सारे लोग, अवर ओन इंग्लिश हाई स्कूल - फुजैराह के विद्यार्थी, अभिभावक और शिक्षक गर्मी से थोडा बहुत राहत की सांस लेते होंगे | यह उन दिनों की बात है जब 2005 में मेरी इस विद्यालय में पहली नौकरी लगी थी और 50 के तापमान में काम करना पड़ता था तो एक पेड़ की छाँव के निचे कितनी राहत मिलती है यह वह ही महसूस कर सकता है जिसने इतनी गर्मी में रेगिस्तान में काम किया हो |
वैसे तो मैंने 10 पौधे लगाये थे और 1 साल तक उनको पानी भी देता रहा लेकिन डेढ़ साल में ही यह नौकरी छोड़ कर दुबई ट्रान्सफर हो गया था और आज जब 11 साल के बाद यह पेड़ देखा तो बहुत प्रसन्नता हुयी |
यह जरुरी नहीं कि आप विर्क्षरोपन सिर्फ अपने घर, गाँव और देश में ही करें अपितु इस सम्पूर्ण धरा में अगर कहीं भी विर्क्षरोपन करते हो तो समझो इस वसुंधरा को बचाने में अहम् योगदान दे रहे हो |















Thank you
Vinod Jethuri

Sunday 23 April 2017

डाँड थौळ (चमराड थौळ) 10 गते बैसाख - मेरे गाँव का मेला

डाँड थौळ हर साल 10 गते बैसाख ( 23 अप्रैल ) को हर वर्ष हर्षो- उल्लास के साथ मे मनाया जाता है, टिहरी गढवाल के भरपूर पट्टी के समस्त गाँव (सौड, साकनी, कुर्न, चिलपड, पुंडोरी, डाँड, दनाडा, भरपुर, बौठ, मराडॅ, किरोड, तोली, डोबरी, सिमस्वाडा, बच्छेलीगाँव) आदि गाँव वासियोँ को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है । इस मेले का महत्व और उत्सुकता यहाँ के समस्त गावँ वासियो के लिये किसी बडे त्यौहार जैसे होली और दिवाली से भी बढकर है क्योंकि चँड मुडँ नामक दैंत्यो का वध करने वाली माँ चामुडाँ के भब्य प्राँगण मे इस मेले का आयोजन किया जाता है । दुर दुर से लोग माँ चामुँडा देवी के दर्शन के लिये आते है । मान्यता है कि जो भी भग्त सच्चे श्रधा भग्ति से इस दिन यँहा पर आते है माँ चामुडा देवी उनकी मनोकामना पुरी करती है । बहुत से गाँवोँ जैसे कुर्न, पुंडोरी और दनाडा से लोग ढोल दमो के साथ मे माता का जयकारा लगाते हुये नाचते हुये इस मेले मे आते है । कुर्न गाँव मे बैसाखी (बिखोदी) के दिन मे न्याजा गाडने कि परमपरा सालो से चली आ रही है और इसी दिन यह न्याजा भी काटा जाता है ।
योँ तो समस्त उत्तराखँड मे बैसाख का महिना मेलोँ के महिने के रुप मे प्रसिध् है और 1 गते से लेकर 30 गते बैसाख तक हर किसी जगह पर कही न कहीँ मेले का आयोजन किया जाता है । यह प्रथा सालो से चली आ रही है । यह थौळ मेळो क महिना होता है, ईन मेळो को हमारे पुर्वजो ने जब शुरु किया था तो इसके दो मुख्य कारण थे पहला इस दिन सभी सगे, सम्बन्धी, मैती, सहेलिया, बेटी- ब्वारी आदि मिलते थे क्योंकि मेले मे सब आते थे तो जिनको आप सालो से नही थे मिल जाते थे और दुसरा जो कुछ सामान आपके गाँव की दुकान मे नही मिलता था वह इस मेले मे सुगमता से मिल जाता था । प्राचिन काल मे कोई शहर नही होते थे, फोन की सुविधा नही थी, चिठ्ठी पत्री और रैबार के माध्यम से अपने सगे सम्बन्धियो का हाल चाल जानते थे । मैने इस मेले मे अपने बचपन मे देखा है कि जो सहेली एक ही गाँव के होते थे और उनकी शादी कँही दुर दुर के गाँवो मे हो जाती थी तो जब वह सालो बाद इस मेले मे मिलते थे तो एक दुसरे से मिलकर इतना खुश होते थे कि उनकी खुशी आसुओँ से महसुस किया जा सकता था । शाम को जब मेला समाप्त होता है जब सभी बहु बेटिया अपने अपने घर को जाते है तो एक दुसरे ओ अपनी समूण (समलौण) देते थे यह समूण मेले से ली हुयी वस्तुये जैसे काँडी, चुडी, फुन्दडी आदि के रूम मे होती थी ।
डाँड थौळ जाने के लिये सौड गाँव होते हुये पैदल जा सकते है और अभी तो माँ चामुडा देवी के मन्दिर से मात्र 500 मीटर की दुरी तक सडक बन चुकी है और लोग अपनी अपनी गाडी से जाते है । यह मेले हमारी सँस्क्रति की पहचान है, इस दिन सभी बहु बेटियाँ अपनी उत्तराखँडी परिधान मे ईस मेले मे आते है । हर परिवार अपने परिवार के सभी सदस्योँ के लिये इस मेले के लिये नये नये कपडे खरिदते है । बच्चोँ को भी इस दिन का बहुत बेसब्री से ईंतजारी रहती है क्योंकि नये कपडे जो ईस दिन मिलंने वाले है ।
इस मेले मे हर् वर्ष हजारो और लाखोँ की सँख्या मे श्रधालु और कौथिगेर आते है अभी भी आज के दिन यँहा पर बहुत भीड होती है । पट्टी भरपूर से जो भी परदेश मे रहते है चाहे ओ होली और दिवाली मे घर जाये या न जाये पर डाँड थौळ के दिन देश विदेशो से इस मेले के लिये घर आते है ।
जय माँ चामुँडा देवी
धन्यवाद
विनोद जेठुडी

शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ - 2022

 शिक्षा का दान करने वाले महान होते हैँ ।  शिक्षक के रुप मे वह, भगवान होते हैँ ॥  शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ