Friday, 16 September 2022

शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ - 2022

 शिक्षा का दान करने वाले महान होते हैँ । 

शिक्षक के रुप मे वह, भगवान होते हैँ ॥ 


शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ

Sunday, 5 September 2021

शिक्षक दिवस की हार्दिक सुभकामनाएँ

अज्ञानता से ज्ञान की ओर, ले जाने वाला ध्योतक
पथ पर्दर्शक, मार्ग दर्शक, हम सब के सुभचिंतक
माता-पिता और भगवान जैसेँ पुज्यनीय हैँ वह शिक्षक
येसे समस्त गुरुजनो को करते प्रणाम होके नत मस्तक 

शिक्षक दिवस की हार्दिक सुभकामनाएँ । 

© 
विनोद जेठुडी, 05/09/2021, 8:30 a.m. 

Tuesday, 27 April 2021

हे परमपिता परमात्मा हमारी प्रार्थना स्वीकार करेँ

सभी की कुशलता के लिए भगवान से #प्रार्थना करते हैँ 🙏

हे परम पिता परमेश्वर हम सच्ची श्रद्धा तथा विश्वास से आपका स्मरण करते हैँ, जाने अनजाने मे हमसे यदि कोइ भुल हो गयी हो तो हमेँ माफ करना । इस कोरोना रुपी भयावह राक्षस पर विजय पाने के लिए हे प्रभु हम आपका स्मरण करते हैँ और आपकी शरण मे आए हैँ । आप मानव जाती का कल्याण करेँ और इस कोरोना रुपी राक्षस का इस प्रथ्वी से नाश करेँ ।
हे प्रभु आप बीमार-बेबस, दीन-दुखियॉ और निर्बल–असहायोँ पर अपनी क्रिपा द्रष्टी बनायेँ रखेँ । हम सच्ची निश्ठा सच्ची श्रधा, और सच्चे मन से आपका स्मरण करते हैँ आप अपना आशिर्वाद प्रदान कर हमे कृतार्थ करें।
हे परमपिता परमात्मा हमारी प्रार्थना स्वीकार करेँ और मानव जाती का कल्याण करेँ

Thursday, 10 December 2020

न सोचा था कभी कि, येसा भी दिन आयेगा

 


न सोचा था कभी कि, येसा भी दिन आयेगा
कोरोना नाम की बिमारी, ईतना हाहाकार मचायेगा
जो जहाँ फँस गया है, वहीँ फँसा रह जायेगा
अपनो से नजदीक रहकर भी अपनो से न मिल पायेगा
 
अपने ही घर मे जब कोई, महिनो बाद आएगा
जिसको देखो घर मे उसका, मुँह ढका ही पाएगा
हाथ मिलाना गले लगाना, किसी से न कर पायेगा
दुर से ही हाथ हिलाकर, १४ दिन का वनवास चले जायेगा
न सोचा था कभी कि ..........
कोरोना नाम की बिमारी ........
 
माँ बाप के मर जाने पर बेटा, मुखाग्नि न दे पायेगा
पंडित जी फोन पर ही, अंतिम सँस्कार करवायेगा
करुणामय हर्दय की पीडा सिर्फ वही समझ पायेगा
जिसने खोया अपनो को और उनसे कभी न मिल पायेगा
न सोचा था कभी कि ..........
कोरोना नाम की बिमारी ........
 
घाडी, घोडा, ट्रेन, जहाजेँ सब बंद हो जायेगा
पैँसे वालोँ का पैँसा भी कुछ काम न कर पायेगा
मजदूर तो बेबस है बेचारा, पैदल ही निकल जायेगा
कोई पहुँचेंगा घर को अपने, कोई भुखा प्यासा ही मर जायेगा
न सोचा था कभी कि ..........
कोरोना नाम की बिमारी ........
 
इस महामारी से लडने को कुछ कोरोना योधा बन जायेंगेँ
मानवता की सेवा को अपनी, जान न्यौछावर कर जायेंगे
रोते बिलखते अपने बच्चोँ को वह महोनोँ तक न मिल पायेंगे
येसा कोरोना योधाओँ का, हर कोई गुणगान गायेंगेँ
न सोचा था कभी कि ..........
कोरोना नाम की बिमारी ........
 
पीडा, दुख, दर्द का यह अशुभ समय टल जायेगा
सुख शांति और सौहार्द का सुभ समय फिर आयेगा
बैज्ञनिकोँ की शोध बहुत जल्द गुल खिलायेगा  
कि इस महामारी की दवाई बहुत जल्दी बन जायेगा
न सोचा था कभी कि, येसा भी दिन आयेगा
कोरोना नाम की बिमारी, ईतना हाहाकार मचायेगा

 © विनोद जेठुडी 24 मई 2020 at 2:10 PM 

Saturday, 28 November 2020

मैँ समाज सेवी बन गया हूँ

दुसरोँ के दुखोँ को सुलझाते सुलझाते, अपनो से ही उलझ गया हूँ । 
जिनसे घनी मित्रता हुआ करती थी कभी, आज उन्ही का दुश्मन बन गया हूँ 
मैँ भी येसो आराम से रह सकता हूँ लेकिन............
समाज सेवा के जूनुन से, दुसरोँ से अलग सा हो गया हूँ ॥
क्योंकि मै अब समाज सेवी बन गया हूँ!  

अब तो दिन भर इतना ब्यस्त रहेने लग गया हूँ,
कि अपने ही परिवार को भी समय नही दे पाता हूँ । 
घर पहुँचते ही बेटा लिपटकर पापा के सँग खेलना चाहता है.. 
लेकिन मै ब्यस्तता के कारण उसे समय नही दे पाता हूँ ॥ 
क्योंकि मै अब समाज सेवी बन गया हूँ! 

कुछ लोगोँ की तो गंदी-गंदी गालियाँ भी सुनता हूँ,
क्योकि उनका मानना है कि स्वार्थ के लिए यह सब करता हूँ ।
काश की हनुमान जी जैसे सीना फाड के दिखा सकता ....  
कि मैँ अपने लिए नही दुसरोँ के लिए जीना चाहता हूँ ॥ 
क्योंकि मै अब समाज सेवी बन गया हूँ!  

छुट्टी के दिन भी परिवार को समय नही दे पाता हूँ 
क्योंकि उसी दिन ही लम्बित पडे कार्योँ को निपटाता हूँ 
बस पत्नि सँग इस बात मे ही लडाई हो जाती है कि ...
मैँ दिन भर फोन पे ही चिपका रहता हूँ ..... 
क्योंकि मै अब समाज सेवी बन गया हूँ!  

अपने शौक और एच्छाओँ का दमन कर रहा हूँ  ।
चाह कर भी अपने लिये समय नही निकाल पा रहा हूँ 
पिक्चर देखे तो जैसेँ सालोँ हो गये हो मुझको .......
कविता लिखने का शौक भी पुरा नही कर पा रहा हूँ ॥ 
क्योंकि मै अब समाज सेवी बन गया हूँ!  

रिस्तेदारोँ से अकसर सिकायतेँ सुनता रहता हूँ 
कि मैँ बडा बन गया हूँ, फोन नही करता हूँ 
उनका रुठना और सोचना भी बिल्कुल सही है .... 
लेकिन कैसेँ समझाऊँ उनको कि ब्यस्त रहता हूँ 
क्योंकि मै अब समाज सेवी बन गया हूँ!  

अपनी मेहनत की कमाई से जो भी कमाता हूँ 
उसमे से कुछ रुपये दुसरोँ के लिए दान देता हूँ 
सँस्था बनाकर खुब पैसे छाप रहा है ...
फिर भी कुछ लोगोँ से यह सुनने को पाता हूँ 
क्योंकि मै अब समाज सेवी बन गया हूँ!  

मुस्किल भरा सफर है फिर भी बढे जा रहा हूँ 
क्योंकि दुसरोँ की खुशी मे ही मैँ खुशी पा रहा हूँ 
इस समाज सेवा के चक्कर मे मैँ 
अपनोँ से दुर होते जा रहा हूँ । 
क्योंकि मै अब समाज सेवी बन गया हूँ!  

दुसरोँ की खुशी के लिए यह सब कर रहा हूँ 
न निजी स्वार्थ इसमे, न कुछ कमा रहा हूँ 
दया धर्म का मूल मंत्र है इसलिए 
बस दयालुता धर्म निभा रहा हूँ ।। 
क्योंकि मै अब समाज सेवी बन गया हूँ!  

 © विनोद जेठुडी, 28/11/2020, 11:00 a.am 

Wednesday, 10 July 2019

नम आखोँ से बडे भाई को भावभिनी श्रधाँजली

भाई आज आपकी म्रत्यु के 3 महिने पुर्ण हो गए है । आज ही के दिन 10/04/2019 की सुबह वह अशुभ घडी थी जब आप इस दुनियाँ से चल बसे थे । वैसेँ तो जो इस दुनियाँ मे जो आया है उसका जाना भी सुनिश्चित है और यही जीवन का सत्य है परंतु मात्र 44 साल की अल्प आयु भी कोई जाने की उम्र होती है क्या ? आपका इस तरह से चले जाना और फिर कभी आपको न देख पाना इस कटु सत्य को स्वीकारना हम सब के लिए इतना आसान नही है ।  आपके चले जाने से येसा लग रहा है जैसेँ मानो सारी दुनियाँ मे अंधकार ही अंधकार सा छाया हो । बचपन की उन यादोँ को याद कर करके आखोँ से आंशुँ टपकने लगते है । हम तो किसी भी तरह से अपने दिल को मना लेते है लेकिन माँ जी, पिताजी जी का जो हाल है वह बयाँ नही कर सकता । माँ जी बहुत कमजोर पड चुकी है क्योंकि मात्र 26 साल की उम्र मे दीदी के इस दुनिया से चले जाने को वह हमेशा याद कर कर के रोती रहती थी लेकिन अब तो आप भी नही रहे तो और भी मुस्किल हो गय है । आपसे मुझे इस बात का भी शिकायत है कि आप हर रोज जो माँ जी और पिताजी को फोन करते थे वह आज भी आपके फोन का ईंतजार करते है इसलिए हर दिन अब मुझे फोन करना पडता है और मैँ यह आपके जाने के बाद बखुबी निभा रहा हूँ । 

भाई आपकी अल्प म्रत्यु हो जाने से आप जो भी इस मनुष्य जन्म की जिम्मेदारियोँ जैसेँ बच्चोँ की पढाई और उनकी शादी ईत्यादी को पुर्ण न कर सके, उन सभी जिम्मेदारियोँ को पुर्ण करने हेतु मै आपको बचन देता हूँ, आप जँहा कहीँ भी रहेँ सुख और शांति से रहेँ यही मै परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता हूँ । काश की प्रभू हमे इतना सा मौका दे देते कि आपको होस्पिटल तक ले जा पाते भले ही होस्पिटल मे ईलाज के दौरान यह अनहोनी हो जाती लेकिन हमे शकुन मिलता है कि हमने एक कोशिस तो की थी । 

आपकी हर एक यादोँ को मैंने सम्भाल के रखा है । आपकी हर एक भेजी हुई चिठ्ठी मैंने सम्भाल के रखी है और जीवन पर्यंत इन यादोँ को अपने साथ रखुँगा ।

जन्म - 08/08/1975 
म्रत्यु - 10/04/2019


Monday, 8 July 2019

पहाडोँ से होता पलायन एक गभीर समस्या - कारण और रोकथाम के उपाय



पहाडोँ से होता पलायन गभीर विषय है, पलायन के कारण और पलायन को रोकने के उपायोँ पर मेरे विचार :- 
एक तरफ जहाँ उत्तराखँड की खुबसुरत वादियोँ, कल कल छल छल करती नदियाँ, झरनोँ एँव प्राक्रतिक सौंदर्य को देखने के लिए देश विदेश से सैलानियोँ का तांता लगा हुआ है वहीँ दुसरी ओर यह हमारा बहुत बडा दुर्भाग्य है कि यहाँ के मूल निवासी यहाँ से पलायन करते जा रहेँ है । पलायन को रोकने के लिए उत्तराखँड सरकार ने पलायन आयोग का गठन भी किया लेकिन पलायन आयोग का गठन मात्र करने से हम पलायन नही रोक सकते बल्कि सरकार और समाज दोनो को मिलकर पलायन के कारणो और पलायन को रोकने के उपायोँ पर कार्य करने की आवश्यक्ता है । 
वैसे तो पलायन के बहुत सारे मुख्य कारण है लेकिन मेरी नजर मे जो 4 मुक्य कारण है वह है । 

१. जीवन यापन हेतु “रोजगार” का अभाव 
२ बेहतर शिक्षा का अभाव
३ स्वास्थ्य सुविधाओँ का अभाव 
४. मूलभूत सुविधाओ का अभाव 

सर्वप्रथम "रोजगार" पलायन का मुक्य कारण है और पलायन आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट मे शायद यह कहा है कि 50% लोग रोजगार की तलाश मे पहाडोँ से पलायन करते है जिसमे की सबसे ज्यादा युवा वर्ग है जिनकी उम्र 26-35 वर्ष है इन आकडॉ से साफ होता है कि यदि हमे उत्तराखडँ मे रोजगार के अवस्रर मिल जाये तो हर कोई वापस अपनी देवभूमी मे रहना पसँद करेगा ।
·         सरकार रोजगार के अवसर के लिए छोटे छोटे लघु उध्योगोँ की स्थापना करेँ।
·         पढे लिखे युवाओँ को सस्ती दरोँ पर बैकँ से लौन मिले ताकि वह अपना रोजगार शुरु कर सके ।
·         ग्रामिण महिलाओँ के लिए स्वरोजगार के लिए छोटी छोटी कोओपरेटिव सोसाईटियोँ का निर्माण करवायेँ जाय ।
·         उत्तराखँडॅ के किसानो को और्गेनिक फुड के लिए प्रेरित करते हुये वहाँ के और्गेनिक फुड को अंतराष्टीय बाजार तक पहुँचाने मे सरकार मदद करेँ
·         उत्तराखँडॅ मे पर्यटन की अपार सम्भावनायेँ है उसके लिए कुछ पर्यटन स्थलोँ को विकसित किये जाय । ऋषिकेश, हरिद्वार, अल्मोडा और नैनिताल जैसे जगहोँ को योग और आयुर्वेद के केंद्र के तर्ज पर विकसित किये जाय ।
एत्यादि बहुत सारे सम्भावनाये है लेकिन उन पर कार्य करने की आवश्यक्ता है । 

दुसरी सबसे बडी कारण है बेहतर शिक्षा का अभाव - हर कोई चाहता है कि वह चाहे जैसेँ भी रहेँ पर अपने बच्चोँ को अच्छा सा पढा लिखा कर एक अच्छा ईंसान बनाएँ । अच्छी शिक्षा के लिए  यह जरुरी नही कि उत्तराखँडॅ मे प्राईवेट स्कुलेँ खोले जाय बल्कि उसके लिए जरुरी है कि सरकारी स्कूलोँ को प्राईवेट स्कूलोँ के तर्ज पर विकसित किये जाय और इन सरकारी स्कूलोँ मे बच्चोँ को प्राईवेट स्कूलोँ से भी बेहतर शिक्षा मिले ।
आखिर क्या कारण है कि प्राईवेट स्कूल के अध्यापको की सेलरी सरकारी स्कूलोँ के अध्यापकोँ की तुलना मे कम होने के बाबजुद भी वह और अच्छा सा पढा पाते है और प्राईवेट स्कोलोँ के पढे बच्चे ज्यादा कामयाब होते है हमे इस विचार्धारा को तोडने की आवश्यक्ता है । इसके लिए सरकार एँव सरकार के अधिकारियोँ को चाहिए कि वह स्वयँ कभी कभी स्कूलोँ मे सरप्राईज विजिट करेँ और वहाँ पर अनुपस्तिथ रह रहे अध्यापको के खिलाफ कार्यवाही करते हुए शिक्षा के स्तर का आकँलन करेँ । सरकार स्कूलोँ मे इंसपेकशन के लिए अधिकारियोँ के एक टीम का गठन करेँ और यह टीम हर साल हर स्कूल मे इंसपेशन करेँ और इंसपेक्शन रिपोर्ट के अनुसार स्कूल की रेटिगँ हो। इस इंसपेकशन मे अच्छे रेटिग पाने वाले स्कूलोँ और वहाँ के अध्यापको को प्रोतसाहित किया जाय और जिन स्कूलोँ की रेटिंग बहुत खराब आयी है उन्हे अगले साल अपनी पढाई के स्तर को बढाने के लिए दबाब बनाया जाय यह मै इसलिए कह रहा हूँ क्योकिँ मै स्वयँ यहा पर शिक्षा के क्षेत्र मे कार्यरत हूँ और यहाँ पर येसा ही होता है । 

पलायन का तीसरा जो मुख्य कारण है वह है स्वास्थ्य सुविधाओँ का अभाव - उत्तराखँड मे स्वास्थ्य सुविधाओँ के अभाव मे आये दिन हम न्युज चैनलोँ के माध्यम से सुनते रहते है कि स्वास्थ्य सुविधाओँ के अभाव मे किसी पेसेंट को एमर्जेंसी मे नजदिकी असपताल तक पहुँचाने के लिए पालकियोँ और डॅडियोँ के माध्यम से मीलोँ दुर चलना पडता है कभी कभी तो समय पर होस्पिटल न पहुँच पाने के कारण अनहोनी भी सुनने को मिलती है। सवयँ मेरी बडी बहन जिसकी उम्र मात्र 26 साल थी प्रसव पीडा के दौरान पालकियोँ के सहारे होस्पिटल ले जाते हुए इस दुनिया से चल बसी । सरकारी क्लिनिक जो नाम मात्र के कुछ जगहो पर खोले गये है वहाँ पर भी यदि डाक्टर और दवाईया एक साथ मिल गये तो यह भी कोई चमात्कार से कम नही इसलिए स्वास्थ्य सुविधाओ पर ध्यान देना अति  आवश्यक्ता है ।
 
चौथी मुख्य कारण है वह है “मूलभूत सुविधाओँ का अभाव”  गांवों में रोजगार और शिक्षा के साथ-साथ बिजली, पानी, आवास, सड़क और संचार जैसी बुनियादी सुविधाएं शहरों की तुलना में बेहद कम है जो कि पलायन का चौथा मुख्य कारण है । जिस सुगमता से शहर मे जीवन यापन हेतु मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध है उसकी तुलना मे पहाड का जीवन पहाड जैसे संघर्ष भरा है क्योंकि हर एक वस्तु के लिए आपको मिलो चलना पडता है । यदि खेती भी करेँ तो जगलीँ जानवरोँ का आतँक बहुत बढ गया है ।

आदि बहुत सारे कारण है लेकिन उन सभी कारणो मे से यह 4 कारण मुख्य है जिस पर सरकार और समाज दोनो को कार्य करने की आवश्यक्ता है | मेरी सरकार से निवेदन है कि यदि सच्चे अर्थो मे आप उत्तराखँड से पलायन रोकना चाहते हो तो सबसे पहले गैरसैण को उत्तराखँड की स्थायी राजधानी बनाओ तभी जाकर आप पहाड के दर्द को समझ सकते है और उस पर कार्य कर सकते है साथा ही मै निवेदन करता हूँ अपने सभी प्रवासी उत्तराखँडी भाई बहनो से कि वह जहाँ कहीँ भी रहेँ साल मे एक बार अपनी जडोँ से जुडे रहने हेतु एक बार अपने पैत्रिक भूमी उत्तराखँड अवश्य जायेँ ।

जहाँ कँही भी रहेँ अपनी जडोँ से जुडेँ रहेँ । 

धन्यवाद ! 
 © विनोद जेठुडी on 07/07/2019 @ 13:45

शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ - 2022

 शिक्षा का दान करने वाले महान होते हैँ ।  शिक्षक के रुप मे वह, भगवान होते हैँ ॥  शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ