पहली ख़ुशी वह थी, जब उसके आने कि खबर मिली थी
मै भी खुश था ओ भी खुश थी, खुशी खूशी से झूम रही थी
सपने संजोकर सपने देखा, सपनो में एक फूल खिला था
फूल के आने की खुशी में, घर आँगन सब खिल उठा था
बीते दिन और ओ दिन आया, जब आने का न्योता पाया
स्वागत की हुयी तैयारी, घर आँगन को खूब सजाया
सही सलामत वह यहां आया, खुशियाँ बस पल भर की लाया
सगे-संबन्धी रिस्ते-नाते, सब के सब बधाईयाँ देते
कुछ ही पल में यों हुआ कि, फूल मुरझाने लगा था
दवा-दुवाओं के सहारे ही, बस जिए जा रहा था
उसने काफी हिम्मत कि थी, जीने का जो जोश भरा था
पर अठारवें दिन ओ हमको, अलविदा कह ही गया था
एक हवा के झोंके जैसे, आया था और चला गया
पल भर की खुशी दे के जीवन भर का गम दे गया
जाते जाते कुछ यों हुवा कि दुखो का पहाड़ फिर टूट पड़ा
जो नन्हा दिल उसका खोला था, खुशी का भी खोलना पड़ा
हर जीवन का लेख लिखा है, पर ऐसा भी तो क्या लिखा ?
सारी दुनिया के दुखों को, क्या मुझको ही दे दिया ?
ऐसे भी क्या कर्म किये थे जो येसी मुझको सजा दिया ?
बेटा-बीबी दोनों के ही, सीने को फाड़ दिया ?
मशीनो से ही, साँस लिया था, अपनी साँस न ले पाया
कहना चाहता था जो मुह से, वह आँखों से कह गया
बेटा मुझको माफ़ करना, मै तूझको बचा न पाया
उस विधाता ने जो लिखा था, उसको न बदल पाया
येसा किसी को कभी न देना, जैसा तूने मुझे दिया
तुझसे माँगा तूने दिया था, फिर वापस क्यों ले लिया
आघे बस तू खुश रखना, जो हुवा सो हो गया
हे ईश्वर तेरी आस्था ने, मुझको तो डगमगा दिया
विनोद जेठुडी 9 मार्च 2014 @ 6:55 AM
जीवन में कई बार ऐसे पल आते हैं जिनको सहना असहाय हो जाता है ... पर नियति के आगे झुकना पड़ता है ...
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