Saturday 22 June 2013

एक आपदा पिडित की आपबीति

उत्तराखँड मे 15, 16 और 17 जून 2013 को आयी प्रलय से हजारो लोगो की जान चले गयी हजारो लोग अभी तक भी लापता है और न जाने कितने लोग अभी भी फँसे हुये है । भगवान से प्रार्थना करते है कि जो लोग अभी भी इस आपदा मे फँसे हुये है उनकी मदद करे और म्रतको की आत्मा को शांति प्रदान करे । एक आपदा पिडित अपनी दर्द भरी दास्ता निचे लिखी पक्तिँयो के माध्यम से सुना रहा है । 

मै चले जा रहा था, बढे जा रहा था
खुबसुरत वादियाँ घनघोर घटायें ..
मंद वेग से बहती हवायें
कल-कल छ्ल-छ्ल करती गंगा
विराजती है जँहा माँ नन्दा
पल भर की थी ये अनुभूती
देवभूमी कहते जिसको
प्रलय भूमी बन चुकी थी ।
प्रलय के प्रतिक है बाबा
शिव-शंभू तेरे द्वार पे आया
आखों देखी जो कुछ देखा
हे प्रभू ओ कभी ना सोचा !
प्रलय का उफ़्फ़ ओ मंजर
पर्वत ढह गये, बने समुंदर
आहाकार की चीख पुकारें
पानी मे बहती लासें
कुछ तो जिंदे दफ़न हुये थे
तडप-तडप के मर रहे थे
सडक और घर सब कुछ ढह गये
नदी मे तिनके जैसे बह गये
पांच दिनो तक दबा हुआ था
लासों के बीच मे पडा हुआ था
मलवे मे मेरा पैर फ़ंसा था
मेरे अपने सारे बह गये..
नम आखों से अलविदा कह गये
मुझको जिँदा क्योँ रख दिया तूने
मुझको भी तो मार ही देता
जिँदा रह कर क्या करुँगा
कैँसे जिँदा रह पाउँगा ? - 4 

1 comment:

  1. मार्मिक ...
    निःशब्द हो जाता है इन्सान ... मेरी सहानभूति है सभी के साथ ...

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