वह बरगद का पेड

वह ताँगे की सवारी

वह बचपन के झुले
वह मिट्टी के खिलौने
वह गाँव के मेले
वह ताँगे की सवारी
वह पुरानी बैलगाडी
वह गाँव की खुशहाली
वह हरी - भरी हरियाली
वह चिडियोँ का चहकना
वह फूलोँ का महकना
वह मिट्टी की खुशबू
वह बारिश का आना

वह पनचखी का आटा
वह चुल्हे की रोटी
वह स्कूल से आना
वह माँ के हाथ का खाना
वह खेतोँ मे जाना
वह हल लगाना
वह गायेँ चुगाना
वह घास ले के आना
वह मेल मिलाप से रहना
वह एक दुसरे के काम आना
वह मिल बाँट के खाना
वह प्रेम और भाईचारा का गाँव
आज शहर मे तब्दिल हो गया है
शहर की उँची उँची इमारतोँ मे
ओ मेरा गाँँव कँँही खो गया है :(
© Vinod Jethuri on 30/11/2016