एक दिन औफिस जाते हुये मै रास्ते मे रुक गया और गाडियो को देखने लगा.. देखते ही देखते मेरे मन मे एक ख्याल आया.. और ओ ख्याल कविता के रुप मे आपके सम्मुख प्रस्तुत है:-
तेज दौडती गाडी को देखा...
तो जिन्दगी का ख्याल आया...!
जिन्दगी भी तो एक गाडी है दोस्तो..
जिसे मैने बहुत तेजी से दौडते पाया....
चलती गाडी से पिछे, मुडके जब मैने देखा..
मोह माया की दौड मे, सबको दौडते पाया.....!
क्या पता कब रुक जाय, सफ़र ईस गाडी का..?
क्योकि कब किसपे से हटा दे, ओ मालिक अपनी साया..
पुन्य, दया, धर्म के रास्तो को, सदा खाली पाया....
कोर्ध,ईर्श्या,लोभ,माया के रास्तो पर, बडा जाम पाया..!
खाली रास्तो पर होगा कठिन, भीड मे आसान चलना.
न भर्मित हों हम रास्तो से, सभी को वही है जाना....
दुख: सुख: के पहियों पे, गाडी को है चलना...
कभी सर्दी तो कभी गर्मी, कभी मौसम बेगाना..
क्या लेके थे आये, क्या लेके है जाना....?
दया धर्म का मुल है, यही सबसे बडा खजाना
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