जिसको चुटकी समझ बैठा था
वह तो एक मुट्ठी निकली.....
मुट्ठी खोल के देखा जब तो !
प्यार की एक चिट्ठी निकली ।
चिट्ठी खोल के पढने लगा तो
प्यार का एक ग्रंथ वह निकली
दिल मे प्यार बहुत है लेकिन !
जो चाह ओ पा नही सकती...।
खेल-खेल मे हो गया ये तो
येसा मै नही चिट्ठी कहती !
मुट्ठी को मालुम न था कि....
हाथो की रेखा एक जैसे ना होती ।
भाग्य से येसा होता है कि....
चार हाथो की रेखायें मिलती
जिस रेखा को देखना चाहते !
ओ रेखा बहुत कम है बनती ।
जिसको चुटकी समझ बैठा था
वह तो एक मुट्ठी निकली.....
मुट्ठी खोल के देखा जब तो !
प्यार की एक चिट्ठी निकली ।
सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी
4 अक्टुवर 2011 @ 4:45 PM
(किसी के द्वारा किसी के माध्यम से किसी के लिये)
वह तो एक मुट्ठी निकली.....
मुट्ठी खोल के देखा जब तो !
प्यार की एक चिट्ठी निकली ।
चिट्ठी खोल के पढने लगा तो
प्यार का एक ग्रंथ वह निकली
दिल मे प्यार बहुत है लेकिन !
जो चाह ओ पा नही सकती...।
खेल-खेल मे हो गया ये तो
येसा मै नही चिट्ठी कहती !
मुट्ठी को मालुम न था कि....
हाथो की रेखा एक जैसे ना होती ।
भाग्य से येसा होता है कि....
चार हाथो की रेखायें मिलती
जिस रेखा को देखना चाहते !
ओ रेखा बहुत कम है बनती ।
जिसको चुटकी समझ बैठा था
वह तो एक मुट्ठी निकली.....
मुट्ठी खोल के देखा जब तो !
प्यार की एक चिट्ठी निकली ।
सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी
4 अक्टुवर 2011 @ 4:45 PM
(किसी के द्वारा किसी के माध्यम से किसी के लिये)
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
वाह ...बहुत बढि़या।
ReplyDeleteबहुत खूब...........
ReplyDeleteacchhi prastuti.
ReplyDeleteयशवंत जी सदा जी विद्या जी & अनामिका जी आप सब का बहुत बहुत धन्यबाद आप सभी लोगो ने मेरी रचना को सराहा अच्छा लगा ..
ReplyDeletebahut pyari si rachna....
ReplyDeleteDhanybaad Mukesh kumar ji. aap mere blog me aaye aur rachna aap ko achhi lagi ..aabhar
ReplyDelete