सच्चे मन से तुझको ध्याया
गुणगान सदा ही तेरा गाया
दया-धर्म के पथ पर चल के
परोपकारिता का दीप जलाया
सच्चाई के पथ पर चल के
औरों को भी चलना सिखाया
गल्ती कौन सी हुयी थी मुझसे ?
जो ऐसी मुझको सजा दिलाया
अच्छा करो तो बुरा ही होगा
ऐसा किसी को बोलते पाया
विश्वास मुझे होने लगा है
क्योंकि,………………
प्रमाण जब सामने आया ।
कलयुग शायद आ ही गया है
सच्चाई पे बुराई जीतने लगा है
बुराई के पथ पर चल नहीं सकता
क्योकि जीवन अभी बहुत बड़ा है
विश्वास कायम तुझ पर अभी भी
शायद ओ परिक्षा थी हमारी
इससे भी बुरा होने वाला था
इसमे ही टाल दिया है ।
सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी
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