Sunday, 23 April 2017

डाँड थौळ (चमराड थौळ) 10 गते बैसाख - मेरे गाँव का मेला

डाँड थौळ हर साल 10 गते बैसाख ( 23 अप्रैल ) को हर वर्ष हर्षो- उल्लास के साथ मे मनाया जाता है, टिहरी गढवाल के भरपूर पट्टी के समस्त गाँव (सौड, साकनी, कुर्न, चिलपड, पुंडोरी, डाँड, दनाडा, भरपुर, बौठ, मराडॅ, किरोड, तोली, डोबरी, सिमस्वाडा, बच्छेलीगाँव) आदि गाँव वासियोँ को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है । इस मेले का महत्व और उत्सुकता यहाँ के समस्त गावँ वासियो के लिये किसी बडे त्यौहार जैसे होली और दिवाली से भी बढकर है क्योंकि चँड मुडँ नामक दैंत्यो का वध करने वाली माँ चामुडाँ के भब्य प्राँगण मे इस मेले का आयोजन किया जाता है । दुर दुर से लोग माँ चामुँडा देवी के दर्शन के लिये आते है । मान्यता है कि जो भी भग्त सच्चे श्रधा भग्ति से इस दिन यँहा पर आते है माँ चामुडा देवी उनकी मनोकामना पुरी करती है । बहुत से गाँवोँ जैसे कुर्न, पुंडोरी और दनाडा से लोग ढोल दमो के साथ मे माता का जयकारा लगाते हुये नाचते हुये इस मेले मे आते है । कुर्न गाँव मे बैसाखी (बिखोदी) के दिन मे न्याजा गाडने कि परमपरा सालो से चली आ रही है और इसी दिन यह न्याजा भी काटा जाता है ।
योँ तो समस्त उत्तराखँड मे बैसाख का महिना मेलोँ के महिने के रुप मे प्रसिध् है और 1 गते से लेकर 30 गते बैसाख तक हर किसी जगह पर कही न कहीँ मेले का आयोजन किया जाता है । यह प्रथा सालो से चली आ रही है । यह थौळ मेळो क महिना होता है, ईन मेळो को हमारे पुर्वजो ने जब शुरु किया था तो इसके दो मुख्य कारण थे पहला इस दिन सभी सगे, सम्बन्धी, मैती, सहेलिया, बेटी- ब्वारी आदि मिलते थे क्योंकि मेले मे सब आते थे तो जिनको आप सालो से नही थे मिल जाते थे और दुसरा जो कुछ सामान आपके गाँव की दुकान मे नही मिलता था वह इस मेले मे सुगमता से मिल जाता था । प्राचिन काल मे कोई शहर नही होते थे, फोन की सुविधा नही थी, चिठ्ठी पत्री और रैबार के माध्यम से अपने सगे सम्बन्धियो का हाल चाल जानते थे । मैने इस मेले मे अपने बचपन मे देखा है कि जो सहेली एक ही गाँव के होते थे और उनकी शादी कँही दुर दुर के गाँवो मे हो जाती थी तो जब वह सालो बाद इस मेले मे मिलते थे तो एक दुसरे से मिलकर इतना खुश होते थे कि उनकी खुशी आसुओँ से महसुस किया जा सकता था । शाम को जब मेला समाप्त होता है जब सभी बहु बेटिया अपने अपने घर को जाते है तो एक दुसरे ओ अपनी समूण (समलौण) देते थे यह समूण मेले से ली हुयी वस्तुये जैसे काँडी, चुडी, फुन्दडी आदि के रूम मे होती थी ।
डाँड थौळ जाने के लिये सौड गाँव होते हुये पैदल जा सकते है और अभी तो माँ चामुडा देवी के मन्दिर से मात्र 500 मीटर की दुरी तक सडक बन चुकी है और लोग अपनी अपनी गाडी से जाते है । यह मेले हमारी सँस्क्रति की पहचान है, इस दिन सभी बहु बेटियाँ अपनी उत्तराखँडी परिधान मे ईस मेले मे आते है । हर परिवार अपने परिवार के सभी सदस्योँ के लिये इस मेले के लिये नये नये कपडे खरिदते है । बच्चोँ को भी इस दिन का बहुत बेसब्री से ईंतजारी रहती है क्योंकि नये कपडे जो ईस दिन मिलंने वाले है ।
इस मेले मे हर् वर्ष हजारो और लाखोँ की सँख्या मे श्रधालु और कौथिगेर आते है अभी भी आज के दिन यँहा पर बहुत भीड होती है । पट्टी भरपूर से जो भी परदेश मे रहते है चाहे ओ होली और दिवाली मे घर जाये या न जाये पर डाँड थौळ के दिन देश विदेशो से इस मेले के लिये घर आते है ।
जय माँ चामुँडा देवी
धन्यवाद
विनोद जेठुडी

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