Wednesday 12 July 2017

एक संदेशवाहक का दर्द


















मैँ आज भी लटका हूँ इस पेड पर
इस आशा के साथ कि…….
कोइ तो होगा मेरि सुध लेने वाला
जिसने कभी मेरा प्रयोग किया होगा
भले ही आज कि इँटरनेट की दुनियाँ मे
पल झपकते ही पल भर मे ही
अपनो की हर पल की खबर मिल जाती है
लेकिन वह भी समय था .....
जब मेरे माध्यम से
अपनो को चिठ्ठी भेजी जाती थी
और लम्बे इंतजार के बाद
उस संदेश को पढने के बाद की अनुभूती
सिर्फ ओ ही महसूस कर सकता है
जिसने कभी चिठ्ठी भेजी और प्राप्त की होगी
पुछो उन दो दिलो से
जिनका प्रेम पत्र मैंने
एक दुसरे को पहुँचाया
कभी कभी कुछ शरारती तत्वोँ
से भी मेरा पाला पडा
जब ओ लकडियोँ की डँडियोँ से
इन प्रेम पत्रोँ को पढा करते थे
लेकिन इतनी तो शराफत थी कि
पढने के बाद वापस डाल दिया करते थे
मैँ मौन बने इन सभी हरकतोँ को
देख – देख कर मुस्कुराता रहता था
लेकिन कभी भी किसी को नही बताया
खुशी है इस बात कि जिस संदेश को
पहुँचाने मे मुझे महिनो लग जाते थे
वह संदेश अब पल झपकते ही पहुँच जाता है
लेकिन दुख: है इस बात का कि
जीनके लिये मैंने अपना
पूरा जीवन लगा दिया
ओ ही मुझे भुल गए हैँ ।

© विनोद जेठुडी 

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