हम गाँववासियोँ के सहयोग से अपने क्षेत्र मे पर्यावरण सरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुय विर्क्षारोपण करना चाहते है । इसी सम्बंध मे जब हम पौधोँ के लिये क्षेत्रिय कार्यालय डी.एफ.ओ औफिस मुनि की रेति मे आवेदन किया तो डी.एफ.ओ साहब ने यह कह कर मना कर दिया कि इस वर्ष सरकार की येसी कोई योजना नहि है जिसके तहत हम आपको पौधे मुहैया करा सकेँ और अगर कोइ येसी योजना आयेगी तो आपको पौधे मिल जायेंगे । डी.एफ.ओ साहब ने अपनी ड्युटी निभाते हुए बिल्कुल सही किया ।
मेरा एक सुझाव है कि सरकार को पर्यावर्ण सरक्षण की दिशा मे कार्य करना होगा, कोई येसी योजना बनानी होगी जिससे लोगो को विर्क्षो को लगाने व उनकी देखभाल करने के लिये प्रेरित करना होगा । दुख: हुआ सुनकर कि वर्तमान सरकार ने अभी तक येसी कोई योजना नही बनायी है जिसके तहत विर्क्षारोपण हेतु लोगोँ को प्रेरित किया जाय ।
इससे अच्छी तो पिछली सरकार थी जिसने “हमारा पेड हमारा धन” और "हरियाली" जैसी योजनाएँ लाकर पर्यावरण सरक्षण के प्रति अपनी कर्तब्यनिष्ठा दिखाई । सरकार जल्द से जल्द अगर येसी कोई योजना नही लाती है तो वन विभाग के नर्सरियोँ मे जो लाखोँ पौधे पेड पैधारोपण के लिए तैयार है हर साल की तरह सडकर नष्ट हो जायेँगे क्योंकि सरकार खुद पौधेरोपण करेगी नही और जो कोई करना चाहतेँ है उनको फ्री मे पैधा देगी नही ।
वन विभाग भी अपनी ड्युटी निभाते हुए अपनी नर्सरी मे पौधे तैयार तो कर देती है लेकिन सरकार की योजाना का एंतजार करती रहती है और योजना तब बन कर आती है जब तक वर्षा रितु खत्म हो जाती है ।
वन विभाग भी अपनी ड्युटी निभाते हुए अपनी नर्सरी मे पौधे तैयार तो कर देती है लेकिन सरकार की योजाना का एंतजार करती रहती है और योजना तब बन कर आती है जब तक वर्षा रितु खत्म हो जाती है ।
सुझाव :- पेडोँ से है रिश्ता हमारा
पेड का हमारे जीवन में भोजन और पानी की तरह महत्वपूर्ण हैं, पेड़ के बिना मानव जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है | हमें स्वस्थ और समृद्ध जीवन देने में पेड़ो का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है । हमें अधिक से अधिक संख्या में अपने निजी और सरकारी जमीन पर वृक्ष लगाने चाहिए जिससे प्रकृति का संतुलन बना रहे और प्राकृतिक आपदाओं को रोका जाय | वन, भूस्कलन को रोकते है और हमें शुद्ध ऑक्सीजन देते है । वन देश और राज्य की प्रगति में हमें आर्थिक सहयोग देते हैं | मानव सृष्टि का सर्वश्रेष्ट प्राणी है इसलिए वृक्षारोपण मानव समाज का दायित्व है |
प्राचीन काल से ही मानव और प्रकृति का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है । भोजन, वस्त्र और आवास की समस्याओं का समाधान भी इन्हीं वनों से हुआ है ।
बचपन में लकड़ी के पालने में झूलना, बुढ़ापे में उसका सहारा लेकर चलना और जीवन लीला की समाप्ति पर इन्हीं लकड़ियों पर सोना मनुष्य की अन्तिम गति है । इन वृक्षों से हमें शुद्ध ऑक्सीजन मिलती है । घने वनों की हरियाली देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है ।
वृक्ष स्वयं धूप में रहकर हमें छाया देते हैं । जब तक हरे-भरे रहते हैं तब तक हमें फल, सब्जियां देते हैं और सूखने पर ईंधन के लिए लकड़ी देते हैं । इन्हीं वृक्षों की हरी पत्तियों और फलों को खाकर गाय, भैंस, बकरी आदि जानवर दूध देते हैं जिसमें हमें प्रोटीन मिलता है ।
अर्ताथ: कह सकते है कि पेड नही तो जीवन नही जो आदि काल से पेडोँ के साथ हमारा रिश्ता चला आया है हमे वह रिश्ता निरंतर कायम रखना होगा, इसलिये इस कार्यक्रम का नाम “पेडोँ से है रिश्ता हमारा” सुझाया गया है ।
प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अपने जीवन में एक वृक्ष अवश्य लगाए । आज हम स्वार्थ के लिए पेड़ तो काटते है लेकिन लेकिन पेड़ लगाना भूल जाते है जिससे ग्लोबल वार्मिग की समस्या आज इतनी उग्र होती चली जा रही है । हर एक ब्यक्ति को पेडोँ के साथ अपना एक रिश्ता कायम करना होगा और यह रिश्ता जीवन भर चले इसलिए लगाये गये पेड की देखभाल करे । योँ तो हर साल लाखोँ पेड लगते है लेकिन रखरखाव के अभाव मे बहुत कम पेड ही जीवित रह पाते है । पेडोँ के साथ हमारा अटैचमेँट होना जरुरी है । हमे जो भी लोग पेड लगएँ उनकी देखभाल करने के लिये उत्साहित और प्रोत्साहित करने की आवश्यक्ता है ।
यों तो उत्तराखंड के जंगलो में हर साल गर्मियों में आग लगती है परन्तु पिछले साल 2016 की गर्मियों में फरवरी से अप्रैल तक 88 दिनों से जादा समय तक लगी भीषण आग से 3 हजार एकड के लगभग जमीन जलाकर खाख हो गयी जो पेड जल गये अब समय है कि विर्क्षारोपण करके उन जगँलो को फिर से हरा भरा बनाया जाय ।
बहुत सी योजनायेँ जैसे जन्मदिवस पर, शादी के अवसर पर, बच्चे के चुडाक्रम के अवसर पर शादी की वर्षगाँठ के अवसर पर, किसी सुभ कार्य के अवसर पर, अपने परिवार के किसी ब्यक्ति के नाम पर आदि बहुत सी अवसर पर लोग विर्क्षारोपण करते है जिसकी मै सराहना करता हूँ लेकिन लगाये गये पौधे की पेड बनने तक देखभाल करना और उस पेड के साथ अटैचमेँट होना बहुत जरुरी है क्योंकि कभी कभी देखने को मिलता है फोटो मे पेड तो लग गए लेकिन कुछ दिन बाद देखो तो वह पौधा सुख चुका होता है ।
चिपको आंदोलन के जैसे एक क्रंति की आवश्यक्ता है और मै चिपको आंदोलन का बहुत बडा समर्थन करता हूँ क्योंकि इस आन्दोलन मे प्रकृति और मानव के बीच जो रिश्ता था जो बीच मे आ गया था और लाखोँ पेड कटने से बच गये थे ।
आशा करता हूँ कि सरकार इस सुझाव पर अमल करते हुए जल्द से जल्द कोई येसी योजना बनायेगी जिसके तहत इस साल भी हम प्रकृति को बचाने हेतु कुछ पौधोँ का विर्क्षारोपण करने मे सफल होँ ।
आओ अपने जीवन में एक पौधा लगाए और पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करे तभी सच्चे अर्थो मेँ हम प्रकृति के साथ अपना रिश्ता कायम करते हुए अपनी जिम्मेदारी निभा पाएंगे |
धन्यवाद !
विनोद जेठुडी
प्रकृति प्रेमी
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