Monday 17 July 2017

जिम्मेदारियां


सुबह सुबह उठ कर निकल जाता हूँ
अपनी राह पर .......
शाम होते ही पहुँचता हूँ
अपने ठिकाने पर
अंधेरा मे जाता हूँ
अंदेरा मे आता हूँ
अंधेरे मे ही परिवार से
फोन पर बात कर लेता हूँ

जिम्मेदारियोँ को निभाने निभाते
जिम्मेदार बन गया हूँ
इसी जिम्मेदारी के खातिर
यँहा परदेश आया हूँ ।
जब आया था, तो सोचा
बस, 3 साल की बात है
लेकिन आज 13 साल हो गये
वापस जाने की हिम्मत
न जुटा पा रहा हूँ ॥

कभी कभी तो सोचता हूँ कि
छोड छाड के के चले आता हूँ  
अपने देश मे ......
फिर “जिम्मेदारियाँ” कहती है....
क्या कमा पाओगे इतना पैसा वहाँ ?
जितना है इस परदेश मे ॥

वतन की जब कोई तसवीर
फेसबूक पर देखने को मिलती है  
सच बोलूँ यार, उसी वक्त
बतन की बहुत याद आती है ।
शादी, ब्याह और त्योहारोँ मे
जब परिवार की फोटो आती है
देख देख कर मन भाऊक हो जाता है  
और आंखे भर आती है 

© विनोद जेठुड़ी 

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