Tuesday, 25 July 2017

अमर शहिद श्री देव सुमन को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि एँव श्रद्धा सुमन अर्पित



जब पुरा देश गुँज रहा था, आजादी के नारोँ से
तब टिहरी रियासत तडप रही थी
, राजा के अत्याचारोँ से
कोई नही बच पाता था इन, “कर” लेने आये साहूकारोँ से 
तब जा के एक "श्री देव" आया था, लडने इन अंधियारोँ से

दयालु हर्दय के कारण आप "सुमन" कहलाये थे 
अत्याचारोँ के खिलाफ, सदा आवाज उठाते थे
आजादी की लडाई मे भी सबसे आगे रहते थे
साहित्य, सम्पादन और सम्मेलन से सदा जुडे रहते थे

बँमुँड पट्टी के जौळ गाँव के आप मूल निवासी थे
हरिराम और तारा देवी के तीसरे लाडले बेटे थे
गायत्री बहन और परशुराम, कमलनयन दो भाई थे
विनय लक्ष्मी जैसी पत्नि का, हर पल साथ पाते थे

कुनैन के नसातंर्गत इंजेक्शन तुम्हे लगाये जाते थे
जिससे तुम पानी पानी चिल्लाते रहते थे
मोहन सिँह जेलर की यातनाये, बहुत तूम सहा करते थे
पत्थर पीस कर रोटी बनाते, फिर तूम्हे खिलाते थे

जानवरोँ जैसा ब्यव्हार, “सुमन”  आपसे किया करते थे
सजा दिलाने के लिए,  झूठे आरोप बनाते थे
209 दिनो तक मुजरिम बनकर, कारावास मे विताये थे
फिर 84 दिनो के अनशन मे अपनी जान गवायेँ थे

25 जुलाई 1944 को सुमन आपने प्राण त्याग दिये
बोरी मे बाँधकर आपके शरीर को, भिलंगना मे बहा दिये
जन अधिकारोँ की लडाई मे आप अमर शहिद हो गये
राजा की नौकरशाही से जनता को आजाद करा गये 

मैँ अपने शरीर के कँण - कँण को नष्ठ हो जाने दुँगा

लेकिन नागरिकोँ के अधिकारोँ का शोषण नही होने दुँगा
निर्ममता और तानाशाही के खिलाफ आपके नारे थे
दृढ इच्छा, दृढ़ शक्ति, दृढ़ आपके इरादे थे 

अमर शहीद के बलिदान दिवस पर, पुष्पांजली अर्पित करता हूँ 
जन्म दिया जिस मां ने तुमको, उसको प्रणाम करता हूँ 
जौल गाँव की उस मिट्टी से मै तिलक लगाता हूँ 
नम आंखों से भावभिनी श्रन्धांजली अर्पित करता हूँ 

© विनोद जेठुड़ी 

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