Monday, 13 October 2014

दोस्त – शहिद वीर सिँह को भावभिनी श्रधाँजली



शहीदों की चिताओ पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वाले का यही बाकि निशाँ होगा......

कभी समय था जब हम साथ मे स्कुल जाया करते थे
कभी समय था जब हम साथ मे ट्युसन पढा करते थे
कभी समय था जब हम साथ मे खेला करते थे.... और 
एक ओ भी समय था जब हम साथ मे भर्ती होने गये थे
ओ उस दिन भर्ती हो गया और हम बहार हो गये .......
ओ फौजी और हम विदेशी  बन गये ...................
मिलना जुलना नही हुआ सालो से, बस सोचते रह गये
मिलेंगे पुरसत से कभी, येसा ओ मुझसे कह गये
क्या सोचा योँ मिलेंगे कि सोचते रह गये
ओ देश सेवा के लिये, शहिद हो गये...
मिलने के ओ सपने, सपने रह गये  
तिरँगे मे बँद अंतिम दर्शन मैने भी कर लिये
दोस्ती की कसमो को कुछ योँ निभा गये
खट्टी - मिठ्ठी यादोँ के सहारे छोड गये
दोस्त तेरी अंतिम यात्रा मे भी हम आ न सके
श्रधांजली नम आखोँ से यही से दे गये ।
भारत माँ के बीर सपूत तुम बिन बोले चले गये
माता पिता सँग पत्नि और दो नन्ही बेटियाँ छोड गये ॥ 

विनोद जेठुडी

Thursday, 19 June 2014

समूण - कुछ हमारी कुछ तुम्हारी


समूण हँसी का
समूण खुशी का
समूण प्यार का
समूण दया का
समूण शिक्षा का
समूण सहयोग का
समूण मानवता का
समूण स्वास्थ्य का
समूण परोपकारिता का
............................
हमने तुमको दी थी खुशी जो
तुमने हमको दी थी हँसी ओ 
यादेँ उनकी रह जाती है......। 
समूण वही कहलाती है ॥ 

सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी

Saturday, 31 May 2014

पक्षपात की परिभाषा

जिस प्रतिस्पर्धा में प्रतिभागी की प्रतिभा का परिणाम प्रतिभा के आधार पर न होकर बल्कि पूर्व से प्रमाणित हो, पक्षपात कहलाता है । 

विनोद जेठुडी, ३१ मई २०१४ @ १०:५० P.M

Saturday, 15 March 2014

कभी खुशी कभी गम




पहली ख़ुशी वह थी, जब उसके आने कि खबर मिली थी
मै भी खुश था ओ भी खुश थी, खुशी खूशी से झूम रही थी
सपने संजोकर सपने देखा, सपनो में एक फूल खिला था 
फूल के आने की खुशी में, घर आँगन सब खिल उठा था

बीते दिन और ओ दिन आया, जब आने का न्योता पाया

स्वागत की हुयी तैयारी, घर आँगन को खूब सजाया
सही सलामत वह यहां आया, खुशियाँ  बस पल भर की लाया
सगे-संबन्धी रिस्ते-नाते, सब के सब बधाईयाँ देते

कुछ ही पल में यों  हुआ कि, फूल मुरझाने लगा था

दवा-दुवाओं  के सहारे  ही,  बस जिए जा रहा था
उसने काफी हिम्मत कि थी, जीने का जो जोश भरा था
पर अठारवें दिन ओ हमको, अलविदा कह ही गया था

एक हवा के झोंके जैसे, आया था और चला गया

पल भर की खुशी दे के जीवन भर का गम दे गया
जाते जाते कुछ यों  हुवा कि दुखो का पहाड़ फिर टूट पड़ा
जो नन्हा दिल उसका खोला था, खुशी का भी खोलना पड़ा 

हर जीवन का लेख लिखा है, पर ऐसा  भी तो क्या लिखा ?

सारी दुनिया के दुखों को, क्या मुझको ही दे दिया ?
ऐसे  भी क्या कर्म किये थे जो येसी मुझको सजा दिया ?
बेटा-बीबी दोनों के ही, सीने को फाड़ दिया ?

मशीनो से ही, साँस लिया था, अपनी साँस न ले पाया
कहना चाहता था जो मुह से, वह  आँखों से कह गया 
बेटा मुझको माफ़ करना, मै  तूझको  बचा न पाया 
उस विधाता ने जो लिखा था, उसको न बदल पाया 

येसा  किसी को कभी न देना, जैसा तूने मुझे दिया 
तुझसे माँगा तूने दिया था, फिर वापस क्यों ले लिया 
आघे बस तू खुश रखना, जो हुवा सो हो गया 
हे ईश्वर तेरी आस्था ने, मुझको तो डगमगा दिया 

 विनोद जेठुडी 9 मार्च  2014 @ 6:55 AM

Saturday, 25 January 2014

चार दिन की चाँदनी

जीवन के हर पल को जी भर के जियो 
चार दिन की चाँदनी में रोशन रहो ……। 
जिंदगी का क्या पता, कब कैसा गम दे जाय ?
कि जीवन में फिर खुशी, नसीब ही न हो ॥ 


सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी
25  जनवरी, 2014 @ 7:45 A.M

Thursday, 23 January 2014

संघर्ष - जीवन और मृत्यु के बीच

नहाने गया था नदी किनारे 
यों फिसला कि बह गया....। 
संघर्ष काफी किया था उसने 
पर तेज भॅवर में फंस गया ॥ 

लहरों में ओ बहता जाता। …..
कभी डुबता कभी ऊपर आता । 
तैरना उसको आता नहीं था …
फिर भी तैरने कि कोशिस करता ॥ 

एक समय तो यों भी आया 
जैसे मानो जीत गया .…। 
किनारे तक बस पहुँच ही चुका था 
फिर तेज लहरों में बह गया.…॥ 

संघर्ष करना काम था उसका 
संघर्ष उसने काफी किया  ....। 
बाहर से हौसला हमने भी दिया पर,
होनी को न टाल सका …॥ 

ऊफ्फ , कैसा मंजर रहा होगा ओ 
जब ओ उससे गुजरा होगा। … ।  
भगवान्, उस आत्मा को शांति देना 
येसा कभी किसी के साथ न करना। . ॥ 



सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी
23  जनवरी, 2014 @ 6:55 A.M

Wednesday, 22 January 2014

सुःख - दुःख

मेरा ये तजुर्बा कहता………....!
दुःख के बाद फिर सुःख है आता..।  
पर, हर इंसान के जीवन में .... 
सुःख  कम और दुःख है जादा....॥   


सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी
22 जनवरी, 2014 @ 6:55 A.M


Tuesday, 21 January 2014

होनी का होना

कोइ कहता है, ओ लेने आया था अपना 
पुनर्जन्मों के कर्मो की सजा को भोगना 
कोइ कहता ग्रहो की दशा का बिगड़ना 
कोइ कहता है लिखा था होनी का होना 
मै कहता हूँ येसा भी क्या था ओ लिखना ?
जिस लिखाई को लिखते ही था मिट जाना !
सोचता हूँ ऐसा क्यों था मेरे साथ होना ?
ओ दिया ही क्यों था जिसे वापस लेना ? - ४ 



सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी
21 जनवरी, 2014 @ 6:40 A.M

पल भर की खुशी और जिंदगी भर का गम

ओ मेरी जिंदगी में क़ुछ इस तरह से आया 
और चला भी गया.……………………।  
कि पल भर की खुशी दे के जिंदगी भर का
गम दे गया। …………………………॥ 



 सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी
21 जनवरी, 2014 @ 6:40 A.M

Monday, 20 January 2014

दुखों के पहाडॊं तले खुशी का मकान


दुखों के पहाडॊं तले खुशी का मकान
यों दबा कि, मिट गया नामो निशान ।
खुशी की खुशी को खुशी से लौटा दे
अभी भी आश्था बची है भगवान ...॥



सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी
20 जनवरी, 2014 @ 6:58 A.M

Monday, 6 January 2014

खुशी कम जादा गम


गमो की लहरो में ख़ुशी का तिनका
तैरते-तैरते पार आ गया । 
कुछ ही पल किनारे पर रहा  
कि तेज लहरो में फिर बह गया  ॥ 



सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी
६ जनवरी २०१४ @ 4:45 PM

शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ - 2022

 शिक्षा का दान करने वाले महान होते हैँ ।  शिक्षक के रुप मे वह, भगवान होते हैँ ॥  शिक्षक दिवस की सुभकामनाएँ