माता-पिता क़ि प्यारी दुलारी
बडी हुयी और हुयी सगाई..
डोली मे बैठकर हुयी विदायी..
घर गांव अपना छोड के आती
बहु-पत्नि बनकर सेवा करती...
नये मुल्क नये देश मे फिर से
छोटा सा अपना घर बसाती...।
माँ बनी फिर आयी जिम्मेदारी
घर के खर्चे बच्चो की पढायी....
ग्रहस्थ जीवन की कठिन लडाई, पर.
आवश्यकताये कभी पुरी ना होती..।
उम्र गुजरी और बन गयी दादी
पूरे परिवार की डोर सम्भालती
नाती पोते साथ मे आते........
दादी मां उन्हे कहानी सुनाती..।
कभी दुख सहते सहते..
बन जाती है ओ बेचारी..
दुख की सीमा पार हुयी जो
बींरागनी बीर बनी ओ....
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ।
सारे जग की जननी है नारी
उसी से हुयी है उत्पति हमारी
दिल मे ईतना प्रेम बसा है..
जैसे सागर मे गहराई....।
माँ की ममता का ये आंचल
बहन की राखी का ये बन्धन
पति पत्नि का का ओ रिस्ता
धन्य हो नारी तुझको तेरे.....
हर रुप मे मिली सफ़लता....
धन्य हे नारी, धन्य हे नारी
धन्य हे नारी, धन्य हे नारी
14 दिसम्बर 2010, समय 7:30 AM, सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी
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