बहार से हम, मुस्कुराये जा रहे है
अन्दर का गम, कोइ ना जाने..
बहार से आँसु, दिख ना पाये..
अन्दर से आँसु, बहे जा रहे है
अन्दर से आँसु, बहे जा रहे है..
बातें तो मीठी, किया करते थे..
बगल मे चाकू, घीसे जा रहे थे..
जिनको मै अपना, समझ रहा था..
वही मुझसे दगा, किये जा रहे थे..
वही मुझसे दगा, किये जा रहे थे..
झूठ जो बोलता, जीत चुका था..
सच्च जो बोला, हार गया मै...
सच्चायी की.. जीत है होती...
इसी आस मे मै, जिये जा रहा था.
इसी आस मे मै, जिये जा रहा था.
बहुत बडी मै, खता कर गया था.
पहली नजर मे, फ़िदा हो गया था.
ओ क्या जाने, होती है तडपन ?
काश जो उनको, अहसास होता.!
काश जो उनको, अहसास होता..
बहार से हम मुस्कुराये जा रहे है
अन्दर का गम, कोई ना जाने..:
बहार से आँसु दिख ना पाये..
अन्दर से आँसु, बहे जा रहे है
अन्दर से आँसु, बहे जा रहे है..
सर्वाधिकार सुरक्षित © विनोद जेठुडी, 12th सितम्बर 2010 @ 11:15 AM
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