सर मे भारी बोझ उठाती
खुद तो भुखी रहती है माँ
बच्चे को भर पेट खिलाती
बच्चे को छाती से लगाकर
बदन के कपडे से है ढकती
पौष की ठन्डी रातो मे माँ
खुद गीली चादर मे सोती
बच्चे की ख़ुशी मे खुश रहती माँ
अपनी ख़ुशी वह कुछ नही चाहती
कांटा चुभे जो बच्चे को तो....
माँ को दर्द बडी जोर से होती
माँ सर्वश्रेष्ठ है जग मे..........
माँ से बढकर कोइ ना प्यारी
माँ की ममता लिख ना पाऊ
जैसे सागर की गहराई.........
अपने तन पर हमे बसाये
बच्चे का माँ बोझ उठाती
कष्ट सहे है माँ ने कितने
यह तो माँ ही है जानती
"माता पिता की सेवा करना
उनको सदा सुख ही देना......
माँ के आन्सु अगर गिरे तो
फिर सारी उम्र पछताना".....
सर्वाधिकार सुरक्षित @ विनोद जेठुडी
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